भजन संहिता 120
1 संकट के समय मैं ने यहोवा को पुकारा, और उसने मेरी सुन ली।
2 हे यहोवा, झूठ बोलने वाले मुंह से और छली जीभ से मेरी रक्षा कर॥
3 हे छली जीभ, तुझ को क्या मिले? और तेरे साथ और क्या अधिक किया जाए?
4 वीर के नोकीले तीर और झाऊ के अंगारे!
5 हाय, हाय, क्योंकि मुझे मेशेक में परदेशी होकर रहना पड़ा और केदार के तम्बुओं में बसना पड़ा है!
6 बहुत काल से मुझ को मेल के बैरियों के साथ बसना पड़ा है।
7 मैं तो मेल चाहता हूं; परन्तु मेरे बोलते ही, वे लड़ना चाहते हैं!
1 A Song of degrees.
2 In my distress I cried unto the Lord, and he heard me.
3 Deliver my soul, O Lord, from lying lips, and from a deceitful tongue.
4 What shall be given unto thee? or what shall be done unto thee, thou false tongue?
5 Sharp arrows of the mighty, with coals of juniper.
6 Woe is me, that I sojourn in Mesech, that I dwell in the tents of Kedar!
7 My soul hath long dwelt with him that hateth peace.
8 I am for peace: but when I speak, they are for war.