Psalm 142
1 ममैं यहोवा की दोहाई देता, मैं यहोवा से गिड़गिड़ाता हूं,
2 मैं अपने शोक की बातें उस से खोलकर कहता, मैं अपना संकट उस के आगे प्रगट करता हूं।
3 जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी, तब तू मेरी दशा को जानता था! जिस रास्ते से मैं जाने वाला था, उसी में उन्होंने मेरे लिये फन्दा लगाया।
4 मैं ने दाहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता है। मेरे लिये शरण कहीं नहीं रही, न मुझ को कोई पूछता है॥
5 हे यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी है; मैं ने कहा, तू मेरा शरणस्थान है, मेरे जीते जी तू मेरा भाग है।
6 मेरी चिल्लाहट को ध्यान देकर सुन, क्योंकि मेरी बड़ी दुर्दशा हो गई है! जो मेरे पीछे पड़े हैं, उन से मुझे बचा ले; क्योंकि वे मुझ से अधिक सामर्थी हैं।
7 मुझ को बन्दीगृह से निकाल कि मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूं! धर्मी लोग मेरे चारों ओर आएंगे; क्योंकि तू मेरा उपकार करेगा॥
1 Maschil of David; A Prayer when he was in the cave.
2 I cried unto the Lord with my voice; with my voice unto the Lord did I make my supplication.
3 I poured out my complaint before him; I shewed before him my trouble.
4 When my spirit was overwhelmed within me, then thou knewest my path. In the way wherein I walked have they privily laid a snare for me.
5 I looked on my right hand, and beheld, but there was no man that would know me: refuge failed me; no man cared for my soul.
6 I cried unto thee, O Lord: I said, Thou art my refuge and my portion in the land of the living.
7 Attend unto my cry; for I am brought very low: deliver me from my persecutors; for they are stronger than I.
8 Bring my soul out of prison, that I may praise thy name: the righteous shall compass me about; for thou shalt deal bountifully with me.